Friday, August 5, 2016

ग्रामोत्थान

ग्रामोद्योग की सुनिश्चित व्यवस्था किए बगैर शहरी उपनगरों के युवाओं को देहात लौटाना संभव नहीं होगा। पिछले पचास वर्षों से ग्रामोद्योंगों को बढ़ावा देने की बातें सुनी जाती रही है लेकिन हुआ इसका उल्टा ही। ग्रामोद्योग टिक नहीं पाएं उनकी और हमारी संवेदना अधिकतर सतही रही है उसके बाद उनके लिए बाजार निर्मित नहीं हो पाएं यह कहा जा चुका है कि ग्रामोत्थान के बिना शहरी उपनगरों में बसे आर्थिक असामनता की आग से झुलसते सुलगते युवाओं को देहात वापस ले जाया नहीं जा सकता है अगर ये वापस देहात नहीं लौटे और शहरो में ही रहे तो हिंसात्मक विद्रोह से पैदा होने वाली घृणा व हिंसा को नियंत्रित करना आसान नहीं होगा तथा इससे उत्पन्न होने वाली चिंगारी कभी भी देश के महानगरों को निगल सकती है। इसलिए ग्रामोद्योग के सामान के लिए एक बाजर निर्मित करना आज हमारे नगरों को सुरक्षित रखने के लिए एकमात्र साधन रह गया है। इसका नियोजन देश के प्रबुद्ध वर्ग स्वैच्छिक संगठन और प्रवासी भारतीय मिलकर कर सकते हैं। देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों और संस्थानों को जिनके सम्मिलित प्रयासों से ही शहरी संस्कृति और कलाओं का विकास हुआ है इनकी रक्षा के लिए अपनी विपणन व्यवस्था का लाभ ग्रामोद्योंगो के सामान की बिक्री के लिए उपलब्ध कराना चाहिए।

- साभार कुछ तो करना ही होगा

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