Saturday, August 6, 2016

उजाले की ओर

गांव का नाम था होशियारपुर। नाम भले ही होशियारपुर हो पर लोग थे निरेबुद्धू। शहर से सटे होने के बावजूद लोगों में नई तकनीकि का जरा भी ज्ञान नहीं। जहां शहर दिन में सूरज से और रात में बिजली के बल्बों से जगमगाता वहीं होशियारपुर में तो दिन भर सूर्य देव कृपा करते मगर शाम ढलते-ढलते ऐसा
अंधेरा छा जाता मानो हर रात अमावस की हो। सरकार के आदेश से गांव में कुछ बिजली के तार जरूर दौड़े पर 15 अगस्त और 26 जनवरी को छोड़कर वो भी पूरे साल गांव वालों की तरह कूप मण्डूक बने रहते। कई लोग अंधेरे के कारण गड्ढे नाले में गिरकर अपने हाथ पैर तुड़वा चुके थे। पर चिंता काहें की, गांव के मुखिया बीरबहादुर ने घोषणा कर रखी थी कि सारे गांव के लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक जला कर रखे। पर ये प्रयास तो ऊंट के मुंह में जीरा साबित होता। भला नन्हें दीपों की क्या बिसात जो हवा के तेज झोकें रोक सके। अवसर 15 अगस्त का था मुखिया जी कचहरी के काम से शहर गए थे दो दिन पहले से ही शहर की ईमारते रंग बिरंगे और कहीं-कहीं तिरंगे रंग के बल्बों से सजी थी। इच्छा तो मुखिया जी की भी हुई कि ऐसे झालरों से गांव की दीवारें भी जगमग करे पर मन मसोस कर रह गए। लेकिन फिर भी इंसान इच्छा के हाथो मजबूर होता है ना चाहते हुए भी मुखिया जी ने झालरों की दो लड़ियां खरीद ली। गांव में लौटे तो जरूर पर किसी को बताया नही कि झालर खरीद कर लाए हैं। वरना लोग उन पर हंसकर लोट-पोट हो जाते। काफी जतन से उनको संन्दूक में छुपा कर रख दिया 15 अगस्त आया और बीत गया पर झालर वैसे की वैसी पड़ी रह गई। एक दिन मुखिया जी घर की देहरी पर बैठे दातून कर रहे थे उसी समय हरिया और उसकी औरत राधा सामने से निकले मुखिया जी बोले काले हरिया कहां जा रहा है अपनी जोरू के साथ हरिया बोला मेरा बेटा विरेश आ रहा है। पूरे 10 साल बाद पढ़ाई करके उसी को लाने। वहीं वीरू जो सालों पहले गया था जिसकी नाक हरदम बहती थी। हरिया बोला हां मुखिया जी वही। इतना कहकर वे दोनों चलते बने। मुखिया जी सोचने लगे एक हरिया का बेटा है जो पढ़लिक कर काबिल बन गया है और एक मेरे बेटे हैं सारे कामचोर निकम्मे है।
खैर किश्मत को दोष देकर मुखिया जी संतुष्ट हो गए। शाम को मुखिया जी चारपाई पर बैठे-बैठे हुक्का गुडगुड़ा रहे थे। अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई मुखिया जी बोले अरे सतीष की मां देखना कौन है। मुखिया की पत्नी ने दरवाजा खोला  सामने हरिया और उसका बेटा विरेश था। मुखिया की पत्नी बोली हरिया आया है अपने बेटे विरेश को लेकर। हरिया और विरेश मुखिया जी के पास आ गए। मुखिया जी बोले जल्दी दीपक इधर लाओ मैं भी तो देखूं अपना वीरू कैसा है। दीपक की लौ में मुखिया जी ने विरेश को ढेरों आर्शीवाद दिए। विरेश बोला मुखिया काका गांव में इतना अंधेरा क्यों हैं। यहां बिजली नहीं है क्या? मुखिया जी बोले है तो जरूर बेटा लेकिन बिजली का कुछ अता-पता नही है। विरेश बोला क्या आपने खण्ड विकास अधिकारी से बात की मुखिया जी बोले सब बेकार है बेटा ये गांव होशियारपुर होते हुए भी अंधकारपुर है। विरेश सोचने लगा ऐसे बात नहीं बनने वाली कुछ करना होगा ताकि गांव जगमग हो। बच्चे पढ़ सके और गांव का विकास हो। अगले दिन विरेश खण्ड विकास अधिकारी से मिला और उसने उन्हें गांव की बिजली की समस्या से अवगत कराया । उन्होंने अपनी असमर्थता जताई विरेश ने जब उन्हें सौर ऊर्जा यन्त्र की याद दिलाई तो उन्होंने हामी भर दी पर गांव वालों को कौन समझाता। विरेश ने इसकी जिम्मेदारी ली। विरेश ने अपने पिता जी के साथ मुखिया जी को सारी बाते बुलाई औऱ पंचायत की बैठक बुलाने को कहा। दूसरे दिन पंचायत बैठी पंचायत में बीडीओ साहब भी आए। विरेश बोला आप लोग सालों से बिजली की समस्या से जूझ रहे हैं सरकार चाह कर भी आपकी जरूरत पूरा करने में नाकाम रही है। लेकिन आज के दौर में बिजली का विकल्प है सौर ऊर्जा यन्त्र इसके बारे में बीडीओ साहब आपको ज्यादा जानकारी देंगे। बीडीओ साहब बोले विरेश ठीक कह रहा है। सौर ऊर्जा ऊर्जा का ही एक माध्यम है। इसमें एक प्लेटनुमा छतरी छत पर या ऊंचाई वाले स्थान पर लगाई जाती है। इसमें दिन भर सूरज से प्राप्त किरणों से ऊर्जा जमा होती है। इस ऊर्जा को तार के माध्यम से बिजली के बोर्ड से जोड़ा जाता है। इससे हम बिजली के उपकरण जैसे कि बल्ब टीवी इत्यादि चला सकते हैं। गांव का केशव बोला इसका खर्च हम कैसे उठाएंगे साहब। बीडीओ साहब बोले इसका खर्च बहुत कम है साथ ही सरकार इसे लगाने में अपना योगदान देती है। अगर आप लोग साथ दें तो आपका गांव भी रोशन हो सकता है। बीडीओ साहब ने एक सौर ऊर्जा प्लेट का प्रदर्शन करके सभी गांव वालों को दिखाया। बीडीओ साहब की बात सुनकर गांव वालों के चेहरे पर मुस्कान की लहर दौड़ गई लोगों ने तुरन्त हामी भर दी दूसरे दिन विरेश बीडीओ साहब के साथ शहर जाकर गांव के लिए ढेरों सौर ऊर्जा की प्लेटें ले आया।

धीरे-धीरे सारे गांव में सौज ऊर्जा की प्लेटे लगा दी गई। सब काम पूरा हो गया। लोग दिल थाम कर शाम होने का इन्तजार करने लगे। शाम होते ही सबसे पहले मुखिया जी ने बिजली का बटन दबाया। सारा घर रोशनी से नहीं उठा धीरे-धीरे सारा गांव जगमगाने लगा। सभी ने विरेश की तारीफ की और बीडीओ साहब को भी धन्यवाद दिया। तभी मुखिया जी ने शहर से लाई झालरों को गली में लटका दिया। सभी खुशी से नाचने लगे आज वाकई में होशियारपुर के लोगों ने होशियारी कर दिखाई थी।

Friday, August 5, 2016

ग्रामोत्थान से सम्पूर्ण क्रांति- "ग्रामीण उर्जा का स्त्रोत गोवंश"

एक अनुमान के अनुसार भारत के देहाती क्षेत्रोंमें बैलों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही ऊर्जा लगभग 40 हजार मेगावाट के बराबर है। इसके बावजूद पशुओं की नस्ल-सुधार की वर्तमान नीति एवं प्रक्रिया उर्जा- उपलब्धि को बढ़ाने की ना होकर केवल दुग्ध- उत्पादन को बढ़ाने के लिए ही है। इसके परिणामस्वरूप  भैंस प्रजाति को प्रोत्साहन मिला है क्योंकि यह दूध अधिक देती है और इनके दूध में घी भी अधिक मात्रा में होता है. गाय का दूध गुणात्मक दृष्टि से अच्छा होने के बावजूद भैस के दूध से कम कीमत में बिकने लगा क्योंकि इसमें घी कम मात्रा में होता है। ट्रैक्टरों के बढ़ते उपयोग के कारण तथा नस्ल सुधार नीति द्वारा बैल के उपेक्षा से बचपन से ही नर प्रजाति (गाय और भैस दोनों की ही) उपेक्षा हो रही है तथा उनके मांस के व्यापार को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसे निर्यात के कारण भी विशेष प्रोत्साहन मिला है इसके कारण दूध देने वाली गाय और भैंस का दूध निकालने वाली प्रक्रिया भी बड़ी क्रूर और अमानवीय हो गई है।

परम्परागत विधि के अनुसार पहले बच्चे को दूध पिलाया जाता था उसके पश्चात गाय अथवा भैंस का दूध दूहा जाता था जिससे ममचता प्रेरित प्रकृतिक हार्मोनों के स्त्राव के फलस्वरूप गाय और भैंस दूध दिया करता थी परन्तु अब यान्त्रिक विधि से गाय और भैंस को दूध देने के लिए मजबूर किया जाता है और गम्भीर पीड़ा की परिस्थिति में उनका दूध निकाला जाता है यह अमानवीय कृत्य बाजार संस्कृति के इस देश पर हाबी हो जाने के कारण आज नित्य प्रति हो रहा है और पीड़ा युक्त दूध के हिंसात्मक संस्कार हमारे जनमानस में दिन रात घुल रहे हैं इसलिए यदि आज के जीवन में हर कोई सामन्य स्थिति में तनावग्रस्त है और झल्लाने को उतारू है तो इस पर किसी को आश्चर्य़ नहीं होना चाहिए दूसरी ओर नर प्रजाति के हनन से ग्रामीण उर्जा का सुगम स्त्रोत धीरे-धीरे सूख रही है जबकि आयातित डीलज के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और उसकी मांग भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाएगी। सर्वनाश का यह खेल आज हमारी आंखों के सामने बड़े नियोजित ढंग से बहुत बड़े पैमाने पर नई सोच समझ के अनुसार होता हुआ प्रतीत हो रहा है। ---- साभार कुछ तो करना ही होगा

ग्रामोत्थान

ग्रामोद्योग की सुनिश्चित व्यवस्था किए बगैर शहरी उपनगरों के युवाओं को देहात लौटाना संभव नहीं होगा। पिछले पचास वर्षों से ग्रामोद्योंगों को बढ़ावा देने की बातें सुनी जाती रही है लेकिन हुआ इसका उल्टा ही। ग्रामोद्योग टिक नहीं पाएं उनकी और हमारी संवेदना अधिकतर सतही रही है उसके बाद उनके लिए बाजार निर्मित नहीं हो पाएं यह कहा जा चुका है कि ग्रामोत्थान के बिना शहरी उपनगरों में बसे आर्थिक असामनता की आग से झुलसते सुलगते युवाओं को देहात वापस ले जाया नहीं जा सकता है अगर ये वापस देहात नहीं लौटे और शहरो में ही रहे तो हिंसात्मक विद्रोह से पैदा होने वाली घृणा व हिंसा को नियंत्रित करना आसान नहीं होगा तथा इससे उत्पन्न होने वाली चिंगारी कभी भी देश के महानगरों को निगल सकती है। इसलिए ग्रामोद्योग के सामान के लिए एक बाजर निर्मित करना आज हमारे नगरों को सुरक्षित रखने के लिए एकमात्र साधन रह गया है। इसका नियोजन देश के प्रबुद्ध वर्ग स्वैच्छिक संगठन और प्रवासी भारतीय मिलकर कर सकते हैं। देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों और संस्थानों को जिनके सम्मिलित प्रयासों से ही शहरी संस्कृति और कलाओं का विकास हुआ है इनकी रक्षा के लिए अपनी विपणन व्यवस्था का लाभ ग्रामोद्योंगो के सामान की बिक्री के लिए उपलब्ध कराना चाहिए।

- साभार कुछ तो करना ही होगा

गो-सेवा केन्द्रित जीवन पद्धति

दुर्भाग्य से गाय आज देश में साम्प्रदायिक तनाव का मुद्दा बन गई है यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारत में केवल एक राज्य ऐसा है जहां सदियों से गोवध पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है और वह है जम्मू-कश्मीर इसीलिए कभी भी इस राज्य में सामाजिक तनाव की परम्परा नहीं रही है गाय किसकी है इस सवाल ने गाय का सबसे अधिक नुकसान किया है। आधुनिकता की होड़ में गाय को अकेला छोड़ दिया है इसको मारने वाला ना हिन्दू है ना मुसलमान वरन आजकी जीवन पद्धति है।
इसीलिए पुनः गौसेवा केन्द्रित जीवन पद्धति को हमारे समाज में वापस लाना होगा इससे ना केवल बचपन से ही परिवारों के जीव मात्र के प्रतिनिधि के रूप में गाय के प्रति संवेदना जागेगी। अपितु महिलाओं और बच्चों को पर्याप्त पोषण भी मिलेगा इस प्रकार जब घरो में पलने वाली गाय जब दूध देना बन्द कर देगी तब उनकी देखभाल ग्राम की गौशालाएं किया करेंगी इसीलिए गौशालाओं की स्थापना के कार्य को गोसंवर्धन के लिए एक आन्दोलन के रूप में चलाने की आवश्यकता है ये गोशालाएं ग्रामोद्योगों का केन्द्र बनेंगी और देहात में गोचर व्यवस्था को फिर से कायम करने में सक्रिय होगीं तभी संभव होगी गोचर केन्द्रित कृषि व्यवस्था की पुर्नस्थापना जो भारत की टिकाऊं खेती-बाड़ी का मेरूदण्ड था। तभी संभव होगा गोसेवा से ग्रामोत्थान और तभी घटित होगी देश भर में ग्रामोत्थान से समानता और सद्भावना की सम्पूर्ण क्रांति। ----- साभार कुछ तो करना ही होगा