
“वृक्ष कबहुं नहीं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के काज से साधु न धरा शरीर।।“
इसका मतलब ये है कि वृक्ष अपने उपर फल उगाता है लेकिन उसको खुद ही नहीं खाता, नदी अपने जल को स्वयं ही नहीं पीती है। इसी तरह से इस मनुष्य रूपी देह की प्राप्ति हमें दूसरों की भलाई करने के लिए हुआ है। तो हमें वृक्ष से ये प्रेरणा लेते हुए ये संकल्प करना चाहिए कि मनुष्य जीवन मिला है हम इसे व्यर्थ ना करें इसका सदुपयोग करें इस बार दिवाली पर अपने साथ दूसरों के लिए भी दिए जलाए... दिवाली की आप सभी को सहर्ष शुभकामनाएं...
