tag:blogger.com,1999:blog-33568681300790788652023-11-16T22:05:33.605+05:30कलम की आवाज़एक छिपी हुई आवाज़ जो कलम के ज़रिए बाहर निकलती हैअभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-69522598892310752212016-09-11T12:58:00.002+05:302016-09-11T12:58:49.524+05:30राष्ट्रीय सहारा दैनिक अखबार के करियर पृष्ठ पर प्रकाशित मेरा लेख....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHqlFsOvzCxdA3G5B6XTaDUB25FiOz9MTT-TVD6pFeankPqEjuy2CJ23NQTqrY3b9ge9YfwU_e7M1vesipqgfb_U7YEjabWUjAIDslynGr_nuj-GcdFjsqGgmosF2VrJ5PsGGhCPSsa4E/s1600/999110_599553766744844_1271615210_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="278" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHqlFsOvzCxdA3G5B6XTaDUB25FiOz9MTT-TVD6pFeankPqEjuy2CJ23NQTqrY3b9ge9YfwU_e7M1vesipqgfb_U7YEjabWUjAIDslynGr_nuj-GcdFjsqGgmosF2VrJ5PsGGhCPSsa4E/s320/999110_599553766744844_1271615210_n.jpg" width="320" /></a></div>
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अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-14686998748008140652016-08-06T00:07:00.003+05:302016-08-06T00:17:42.289+05:30उजाले की ओर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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गांव का नाम था होशियारपुर। नाम भले ही होशियारपुर हो पर लोग थे निरेबुद्धू। शहर से सटे होने के बावजूद लोगों में नई तकनीकि का जरा भी ज्ञान नहीं। जहां शहर दिन में सूरज से और रात में बिजली के बल्बों से जगमगाता वहीं होशियारपुर में तो दिन भर सूर्य देव कृपा करते मगर शाम ढलते-ढलते ऐसा </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRBx1FxHA6l9mhb25b7aTUiT3a1iaxeSsytcsv2UvEwnsMMFtOhCXtUH8jZ5RW682QuHjPnSq_UCsIDM6z7VlUH7pWqLSvUboaYWgxMWxyUn64_M67BOU0OS1FATmyZCD75SFw_39UxT0/s1600/lilpur-slider.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="191" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRBx1FxHA6l9mhb25b7aTUiT3a1iaxeSsytcsv2UvEwnsMMFtOhCXtUH8jZ5RW682QuHjPnSq_UCsIDM6z7VlUH7pWqLSvUboaYWgxMWxyUn64_M67BOU0OS1FATmyZCD75SFw_39UxT0/s320/lilpur-slider.jpg" width="320" /></a></div>
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अंधेरा छा जाता मानो हर रात अमावस की हो। सरकार के आदेश से गांव में कुछ बिजली के तार जरूर दौड़े पर 15 अगस्त और 26 जनवरी को छोड़कर वो भी पूरे साल गांव वालों की तरह कूप मण्डूक बने रहते। कई लोग अंधेरे के कारण गड्ढे नाले में गिरकर अपने हाथ पैर तुड़वा चुके थे। पर चिंता काहें की, गांव के मुखिया बीरबहादुर ने घोषणा कर रखी थी कि सारे गांव के लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक जला कर रखे। पर ये प्रयास तो ऊंट के मुंह में जीरा साबित होता। भला नन्हें दीपों की क्या बिसात जो हवा के तेज झोकें रोक सके। अवसर 15 अगस्त का था मुखिया जी कचहरी के काम से शहर गए थे दो दिन पहले से ही शहर की ईमारते रंग बिरंगे और कहीं-कहीं तिरंगे रंग के बल्बों से सजी थी। इच्छा तो मुखिया जी की भी हुई कि ऐसे झालरों से गांव की दीवारें भी जगमग करे पर मन मसोस कर रह गए। लेकिन फिर भी इंसान इच्छा के हाथो मजबूर होता है ना चाहते हुए भी मुखिया जी ने झालरों की दो लड़ियां खरीद ली। गांव में लौटे तो जरूर पर किसी को बताया नही कि झालर खरीद कर लाए हैं। वरना लोग उन पर हंसकर लोट-पोट हो जाते। काफी जतन से उनको संन्दूक में छुपा कर रख दिया 15 अगस्त आया और बीत गया पर झालर वैसे की वैसी पड़ी रह गई। एक दिन मुखिया जी घर की देहरी पर बैठे दातून कर रहे थे उसी समय हरिया और उसकी औरत राधा सामने से निकले मुखिया जी बोले काले हरिया कहां जा रहा है अपनी जोरू के साथ हरिया बोला मेरा बेटा विरेश आ रहा है। पूरे 10 साल बाद पढ़ाई करके उसी को लाने। वहीं वीरू जो सालों पहले गया था जिसकी नाक हरदम बहती थी। हरिया बोला हां मुखिया जी वही। इतना कहकर वे दोनों चलते बने। मुखिया जी सोचने लगे एक हरिया का बेटा है जो पढ़लिक कर काबिल बन गया है और एक मेरे बेटे हैं सारे कामचोर निकम्मे है।</div>
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खैर किश्मत को दोष देकर मुखिया जी संतुष्ट हो गए। शाम को मुखिया जी चारपाई पर बैठे-बैठे हुक्का गुडगुड़ा रहे थे। अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई मुखिया जी बोले अरे सतीष की मां देखना कौन है। मुखिया की पत्नी ने दरवाजा खोला सामने हरिया और उसका बेटा विरेश था। मुखिया की पत्नी बोली हरिया आया है अपने बेटे विरेश को लेकर। हरिया और विरेश मुखिया जी के पास आ गए। मुखिया जी बोले जल्दी दीपक इधर लाओ मैं भी तो देखूं अपना वीरू कैसा है। दीपक की लौ में मुखिया जी ने विरेश को ढेरों आर्शीवाद दिए। विरेश बोला मुखिया काका गांव में इतना अंधेरा क्यों हैं। यहां बिजली नहीं है क्या? मुखिया जी बोले है तो जरूर बेटा लेकिन बिजली का कुछ अता-पता नही है। विरेश बोला क्या आपने खण्ड विकास अधिकारी से बात की मुखिया जी बोले सब बेकार है बेटा ये गांव होशियारपुर होते हुए भी अंधकारपुर है। विरेश सोचने लगा ऐसे बात नहीं बनने वाली कुछ करना होगा ताकि गांव जगमग हो। बच्चे पढ़ सके और गांव का विकास हो। अगले दिन विरेश खण्ड विकास अधिकारी से मिला और उसने उन्हें गांव की बिजली की समस्या से अवगत कराया । उन्होंने अपनी असमर्थता जताई विरेश ने जब उन्हें सौर ऊर्जा यन्त्र की याद दिलाई तो उन्होंने हामी भर दी पर गांव वालों को कौन समझाता। विरेश ने इसकी जिम्मेदारी ली। विरेश ने अपने पिता जी के साथ मुखिया जी को सारी बाते बुलाई औऱ पंचायत की बैठक बुलाने को कहा। दूसरे दिन पंचायत बैठी पंचायत में बीडीओ साहब भी आए। विरेश बोला आप लोग सालों से बिजली की समस्या से जूझ रहे हैं सरकार चाह कर भी आपकी जरूरत पूरा करने में नाकाम रही है। लेकिन आज के दौर में बिजली का विकल्प है सौर ऊर्जा यन्त्र इसके बारे में बीडीओ साहब आपको ज्यादा जानकारी देंगे। बीडीओ साहब बोले विरेश ठीक कह रहा है। सौर ऊर्जा ऊर्जा का ही एक माध्यम है। इसमें एक प्लेटनुमा छतरी छत पर या ऊंचाई वाले स्थान पर लगाई जाती है। इसमें दिन भर सूरज से प्राप्त किरणों से ऊर्जा जमा होती है। इस ऊर्जा को तार के माध्यम से बिजली के बोर्ड से जोड़ा जाता है। इससे हम बिजली के उपकरण जैसे कि बल्ब टीवी इत्यादि चला सकते हैं। गांव का केशव बोला इसका खर्च हम कैसे उठाएंगे साहब। बीडीओ साहब बोले इसका खर्च बहुत कम है साथ ही सरकार इसे लगाने में अपना योगदान देती है। अगर आप लोग साथ दें तो आपका गांव भी रोशन हो सकता है। बीडीओ साहब ने एक सौर ऊर्जा प्लेट का प्रदर्शन करके सभी गांव वालों को दिखाया। बीडीओ साहब की बात सुनकर गांव वालों के चेहरे पर मुस्कान की लहर दौड़ गई लोगों ने तुरन्त हामी भर दी दूसरे दिन विरेश बीडीओ साहब के साथ शहर जाकर गांव के लिए ढेरों सौर ऊर्जा की प्लेटें ले आया।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPpQOCzi410d_Yw-aUcoHF5qblGl9tV7oV2A2xzhQsn3PU6SV4x28TOQ6UO_hE6ihSBkloKfxOo9JP7ZGa12hr6OIsStRuMtsKAviVXj6s7EpicFWkwOPE2yRG9-vEKdWihlcjPMM1pI8/s1600/Lights-from-Solar-PV.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPpQOCzi410d_Yw-aUcoHF5qblGl9tV7oV2A2xzhQsn3PU6SV4x28TOQ6UO_hE6ihSBkloKfxOo9JP7ZGa12hr6OIsStRuMtsKAviVXj6s7EpicFWkwOPE2yRG9-vEKdWihlcjPMM1pI8/s320/Lights-from-Solar-PV.jpg" width="320" /></a></div>
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धीरे-धीरे सारे गांव में सौज ऊर्जा की प्लेटे लगा दी गई। सब काम पूरा हो गया। लोग दिल थाम कर शाम होने का इन्तजार करने लगे। शाम होते ही सबसे पहले मुखिया जी ने बिजली का बटन दबाया। सारा घर रोशनी से नहीं उठा धीरे-धीरे सारा गांव जगमगाने लगा। सभी ने विरेश की तारीफ की और बीडीओ साहब को भी धन्यवाद दिया। तभी मुखिया जी ने शहर से लाई झालरों को गली में लटका दिया। सभी खुशी से नाचने लगे आज वाकई में होशियारपुर के लोगों ने होशियारी कर दिखाई थी। </div>
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अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-70638270000395223392016-08-05T23:14:00.001+05:302016-08-05T23:14:29.872+05:30ग्रामोत्थान से सम्पूर्ण क्रांति- "ग्रामीण उर्जा का स्त्रोत गोवंश"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक अनुमान के अनुसार भारत के देहाती क्षेत्रोंमें बैलों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही ऊर्जा लगभग 40 हजार मेगावाट के बराबर है। इसके बावजूद पशुओं की नस्ल-सुधार की वर्तमान नीति एवं प्रक्रिया उर्जा- उपलब्धि को बढ़ाने की ना होकर केवल दुग्ध- उत्पादन को बढ़ाने के लिए ही है। इसके परिणामस्वरूप भैंस प्रजाति को प्रोत्साहन मिला है क्योंकि यह दूध अधिक देती है और इनके दूध में घी भी अधिक मात्रा में होता है. गाय का दूध गुणात्मक दृष्टि से अच्छा होने के बावजूद भैस के दूध से कम कीमत में बिकने लगा क्योंकि इसमें घी कम मात्रा में होता है। ट्रैक्टरों के बढ़ते उपयोग के कारण तथा नस्ल सुधार नीति द्वारा बैल के उपेक्षा से बचपन से ही नर प्रजाति (गाय और भैस दोनों की ही) उपेक्षा हो रही है तथा उनके मांस के व्यापार को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसे निर्यात के कारण भी विशेष प्रोत्साहन मिला है इसके कारण दूध देने वाली गाय और भैंस का दूध निकालने वाली प्रक्रिया भी बड़ी क्रूर और अमानवीय हो गई है।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtCW5TbNZwCoMRcBIoTXWcBTssCQeXW_jBukB5tRJaRB-ZvIP-c8gp_bUd99CsCO7F64K5AYs9ka1uEN7SAJVuxUXRn3RjvsCUVhQkyL6GnpyyU4AQ7UVTqdHO-dZzazc_C7wdCTX1684/s1600/calf-cow.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="218" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtCW5TbNZwCoMRcBIoTXWcBTssCQeXW_jBukB5tRJaRB-ZvIP-c8gp_bUd99CsCO7F64K5AYs9ka1uEN7SAJVuxUXRn3RjvsCUVhQkyL6GnpyyU4AQ7UVTqdHO-dZzazc_C7wdCTX1684/s320/calf-cow.jpg" width="320" /></a></div>
परम्परागत विधि के अनुसार पहले बच्चे को दूध पिलाया जाता था उसके पश्चात गाय अथवा भैंस का दूध दूहा जाता था जिससे ममचता प्रेरित प्रकृतिक हार्मोनों के स्त्राव के फलस्वरूप गाय और भैंस दूध दिया करता थी परन्तु अब यान्त्रिक विधि से गाय और भैंस को दूध देने के लिए मजबूर किया जाता है और गम्भीर पीड़ा की परिस्थिति में उनका दूध निकाला जाता है यह अमानवीय कृत्य बाजार संस्कृति के इस देश पर हाबी हो जाने के कारण आज नित्य प्रति हो रहा है और पीड़ा युक्त दूध के हिंसात्मक संस्कार हमारे जनमानस में दिन रात घुल रहे हैं इसलिए यदि आज के जीवन में हर कोई सामन्य स्थिति में तनावग्रस्त है और झल्लाने को उतारू है तो इस पर किसी को आश्चर्य़ नहीं होना चाहिए दूसरी ओर नर प्रजाति के हनन से ग्रामीण उर्जा का सुगम स्त्रोत धीरे-धीरे सूख रही है जबकि आयातित डीलज के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और उसकी मांग भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाएगी। सर्वनाश का यह खेल आज हमारी आंखों के सामने बड़े नियोजित ढंग से बहुत बड़े पैमाने पर नई सोच समझ के अनुसार होता हुआ प्रतीत हो रहा है। ---- साभार कुछ तो करना ही होगा</div>
अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-91177406571600316642016-08-05T21:05:00.003+05:302016-08-05T21:21:30.171+05:30ग्रामोत्थान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ग्रामोद्योग की सुनिश्चित व्यवस्था किए बगैर शहरी उपनगरों के युवाओं को देहात लौटाना संभव नहीं होगा। पिछले पचास वर्षों से ग्रामोद्योंगों को बढ़ावा देने की बातें सुनी जाती रही है लेकिन हुआ इसका उल्टा ही। ग्रामोद्योग टिक नहीं पाएं उनकी और हमारी संवेदना अधिकतर सतही रही है उसके बाद उनके लिए बाजार निर्मित नहीं हो पाएं यह कहा जा चुका है कि ग्रामोत्थान के बिना शहरी उपनगरों में बसे आर्थिक असामनता की आग से झुलसते सुलगते युवाओं को देहात वापस ले जाया नहीं जा सकता है अगर ये वापस देहात नहीं लौटे और शहरो में ही रहे तो हिंसात्मक विद्रोह से पैदा होने वाली घृणा व हिंसा को नियंत्रित करना आसान नहीं होगा तथा इससे उत्पन्न होने वाली चिंगारी कभी भी देश के महानगरों को निगल सकती है। इसलिए ग्रामोद्योग के सामान के लिए एक बाजर निर्मित करना आज हमारे नगरों को सुरक्षित रखने के लिए एकमात्र साधन रह गया है। इसका नियोजन देश के प्रबुद्ध वर्ग स्वैच्छिक संगठन और प्रवासी भारतीय मिलकर कर सकते हैं। देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों और संस्थानों को जिनके सम्मिलित प्रयासों से ही शहरी संस्कृति और कलाओं का विकास हुआ है इनकी रक्षा के लिए अपनी विपणन व्यवस्था का लाभ ग्रामोद्योंगो के सामान की बिक्री के लिए उपलब्ध कराना चाहिए।<br />
<br />- साभार कुछ तो करना ही होगा</div>
अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-36631614942813007262016-08-05T21:05:00.002+05:302016-08-05T23:02:16.166+05:30गो-सेवा केन्द्रित जीवन पद्धति<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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दुर्भाग्य से गाय आज देश में साम्प्रदायिक तनाव का मुद्दा बन गई है यह बात
ध्यान देने योग्य है कि भारत में केवल एक राज्य ऐसा है जहां सदियों से गोवध
पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है और वह है जम्मू-कश्मीर इसीलिए कभी भी इस राज्य
में सामाजिक तनाव की परम्परा नहीं रही है गाय किसकी है इस सवाल ने गाय का
सबसे अधिक नुकसान किया है। आधुनिकता की होड़ में गाय को अकेला छोड़ दिया है
इसको मारने वाला ना हिन्दू है ना मुसलमान वरन आजकी जीवन पद्धति है।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd1pL_7JrF0KRtwh5Xu2aeNltw5tTkpEb83CzNrX75gHzlDPatf_sgJ7yGyc95dRsp91_8txeRHAvlyMLG4PPGCt_qqCzN_MKw2K-Ym2b8q6tLEVLHLFMoC2xKxxjYLp-ZpULYpjK7BSs/s1600/Cow.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="228" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd1pL_7JrF0KRtwh5Xu2aeNltw5tTkpEb83CzNrX75gHzlDPatf_sgJ7yGyc95dRsp91_8txeRHAvlyMLG4PPGCt_qqCzN_MKw2K-Ym2b8q6tLEVLHLFMoC2xKxxjYLp-ZpULYpjK7BSs/s320/Cow.jpg" width="320" /></a></div>
इसीलिए पुनः गौसेवा केन्द्रित जीवन पद्धति को हमारे समाज में वापस लाना होगा इससे ना केवल बचपन से ही परिवारों के जीव मात्र के प्रतिनिधि के रूप में गाय के प्रति संवेदना जागेगी। अपितु महिलाओं और बच्चों को पर्याप्त पोषण भी मिलेगा इस प्रकार जब घरो में पलने वाली गाय जब दूध देना बन्द कर देगी तब उनकी देखभाल ग्राम की गौशालाएं किया करेंगी इसीलिए गौशालाओं की स्थापना के कार्य को गोसंवर्धन के लिए एक आन्दोलन के रूप में चलाने की आवश्यकता है ये गोशालाएं ग्रामोद्योगों का केन्द्र बनेंगी और देहात में गोचर व्यवस्था को फिर से कायम करने में सक्रिय होगीं तभी संभव होगी गोचर केन्द्रित कृषि व्यवस्था की पुर्नस्थापना जो भारत की टिकाऊं खेती-बाड़ी का मेरूदण्ड था। तभी संभव होगा गोसेवा से ग्रामोत्थान और तभी घटित होगी देश भर में ग्रामोत्थान से समानता और सद्भावना की सम्पूर्ण क्रांति। ----- साभार कुछ तो करना ही होगा</div>
अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-84631393732817032632012-02-20T10:25:00.000+05:302012-02-20T10:46:01.119+05:30हर-हर महादेव...आज महा शिवरात्रि का पावन पर्व है...हर साल की तरह इस साल भी मन्दिर गया था सुबह-सुबह भोले शंकर को जल चढ़ाने... लेकिन इस बार अपने गांव नहीं बल्कि दिल्ली में घर से जब निकला कि तो लगा कि मन्दिर में भीड़ होगी लेकिन वहां पहुंचने पर तो एक-दो ही शिव भक्त ऊँ नमः शिवाय बोलते हुए जल चढ़ा रहे थे। तरस आने लगी लोगों के उपर लोग इतने व्यस्त हो गए कि अब उन्हें भगवान के लिए भी एक पल नहीं निकाला जाता... सब लोग अपने में मस्त इसी को सोचकर पुराने दिन याद आ जाते हैं... जब हम लोग छोटे थे गांव से कुछ दूर शिव मन्दिर है जहां पर आस-पास के गांवों के लोग जल चढ़ाने के लिए इकट्ठा होते थे। जल चढ़ाने के लिए इतनी भीड़ होती थी कि अगर कोई कमजोर व्यक्ति रहे तो उस भीड़ में ही दब जाए...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQIr5gTFqfF0KuWX5kLVAQHLa97qMLQJI-AzlSflNWrxeox4cDL3ifkWwboNOWkLHHdskmAXhTsTCozfDcuPIkeaBg1zDiB8Vqt53_JCZh5XCvyYYgFxVrfGnvm7nf0T7bxoS2aGUgvw8/s1600/NewsImage.aspx.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 250px; height: 250px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQIr5gTFqfF0KuWX5kLVAQHLa97qMLQJI-AzlSflNWrxeox4cDL3ifkWwboNOWkLHHdskmAXhTsTCozfDcuPIkeaBg1zDiB8Vqt53_JCZh5XCvyYYgFxVrfGnvm7nf0T7bxoS2aGUgvw8/s320/NewsImage.aspx.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5711081862246362002" /></a> जल चढ़ाने के बाद सब लोग मेला घुमते थे। शाम को लोग मन्दिर के पास ढोल- हारमोनियम लेकर फाग गाने बैठ जाते थे। बड़ा मजा आता था सुनकर क्योंकि हम लोगों को भी छोटी वाली झाल बजाने को मिलती थी। बड़ा मजा आता था जब ढोल की ताल से ताल मिलाया जाता था। कितना हसीन था वो पल... अब तो यही लगता है कि सारी यादें अब धुमिल होने लगी हैं...सब लोग बस अपने में मस्त है... <br />“हमें अपनों से कब फुर्सत गैरों से हम कब खाली, चलो हो चुका मिलना-जुलना ना हम खाली ना तुम खाली।”अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-45387075865907001292011-10-18T13:42:00.002+05:302011-10-18T13:43:54.009+05:30इस दिवाली पर...दीपों के इस पावन पर्व पर आपने क्या सोचा है?... अपने घर को सजाने को फूलों से महकाने को या फिर तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाने के लिए। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस बार हम दिवाली में उन लोगों के लिए भी एक चिराग जलाएंगे जिनके आंखों के सामने अंधेरा है जिनके पास रहने के लिए घर नहीं है। जिनके पास तन ढ़कने के लिए कपड़े नहीं हैं। जो रोजाना एक वक्त की रोटी खाकर सड़कों के किनारे ही अपनी रात काट लेते हैं। क्या कभी आपने उनसे पूछा है कि कैसी बीती आपकी दिवाली? आप दिवाली के दिन लक्ष्मी की पूजा करते हैं कि लेकिन क्या कभी आपने मां लक्ष्मी को उस मजदूर बस्ती में जाने के लिए कहां है जहां पर गरीबी अपने तांडव करती है। जिनके घर में चूल्हे नहीं जलते। कहने को तो हर कोई अपने लिए कुछ करता है लेकिन जाना कौन जाता है जो दूसरों के लिए करता है। हमारे आस-पास के पौधे भी खुद के लिए नहीं करते वो भी सदा दूसरों के लिए ही करते रहते हैं। हिंदी में परोपकार के उपर एक दोहा है- <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGohrNCGwKwTePYVSvoyM9oxXqbKW-ZlIH8Q6PKGi8cFaXfTY2BGAhzDizBmhWA_32l0iWlysW4cUAXJq59oJbvpGdFcX67haLVcEvEBMh4fRgGq5AChj2qPEZXjgzm_B9vm4viQarbss/s1600/images.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 259px; height: 194px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGohrNCGwKwTePYVSvoyM9oxXqbKW-ZlIH8Q6PKGi8cFaXfTY2BGAhzDizBmhWA_32l0iWlysW4cUAXJq59oJbvpGdFcX67haLVcEvEBMh4fRgGq5AChj2qPEZXjgzm_B9vm4viQarbss/s320/images.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5664742311797710162" /></a><br />“वृक्ष कबहुं नहीं फल भखै, नदी न संचै नीर।<br />परमारथ के काज से साधु न धरा शरीर।।“<br />इसका मतलब ये है कि वृक्ष अपने उपर फल उगाता है लेकिन उसको खुद ही नहीं खाता, नदी अपने जल को स्वयं ही नहीं पीती है। इसी तरह से इस मनुष्य रूपी देह की प्राप्ति हमें दूसरों की भलाई करने के लिए हुआ है। तो हमें वृक्ष से ये प्रेरणा लेते हुए ये संकल्प करना चाहिए कि मनुष्य जीवन मिला है हम इसे व्यर्थ ना करें इसका सदुपयोग करें इस बार दिवाली पर अपने साथ दूसरों के लिए भी दिए जलाए... दिवाली की आप सभी को सहर्ष शुभकामनाएं...अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-25840801158432512402011-09-05T15:16:00.003+05:302011-09-05T15:28:17.488+05:30प्यार एक अहसास जिसके सामने कुछ ना आए रास<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh36Ju5gj-LTo0sGrGwz5uH5Xw8pepl6duVjUIjn1Y5vHo1p9UcrZdFsU9ymHAatRxdapPM3HRzoZ2ISWr_Z9MbgL1xww1u5W4aHRhgzh8WYMNfYB1LbCg2jFVV7OdRvtX6X4yfd3Pm_WE/s1600/2222.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh36Ju5gj-LTo0sGrGwz5uH5Xw8pepl6duVjUIjn1Y5vHo1p9UcrZdFsU9ymHAatRxdapPM3HRzoZ2ISWr_Z9MbgL1xww1u5W4aHRhgzh8WYMNfYB1LbCg2jFVV7OdRvtX6X4yfd3Pm_WE/s320/2222.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5648811977455303650" /></a><br />प्यार एक अहसास <br />जिसके सामने कुछ ना आए रास<br />नित निरंतर प्यार के पास<br />बीते समय प्यार के आस-पास<br />प्यार एक अहसास जिसके सामने कुछ ना आए रास<br /><br />प्यार कर जीवन में भर आए खुशियों की आस<br />नित नए तरकीब सिखाता प्यार का अहसास<br />सुंदर चितवन रंग है प्यारी प्यार की है पहचान<br />प्यार एक अहसास है जिसके सामने कुछ ना आए रास<br /><br />प्यार बिना जीवन है सूना जैसे बिन पानी मछली का जीना<br />हंसी दिलाती मेल कराती प्यार का अहसास<br />प्यार तो है ऐसी चाहत जैसे मेढ़क को बारिश की प्यास<br />प्यार एक अहसास जिसके सामने कुछ ना आए रास<br /><br />दो दिलों के मिलने से होता है प्यार का अहसास<br />रंग हो गोरा या हो काला इसकी नहीं परवाह <br />मन में बस हो विश्वास यही है प्यार का अहसास<br />प्यार एक अहसास जिसके सामने कुछ ना आए रास<br /><br />ना छल ना कोई कपट उस प्यार पर है अभिमान<br />दुनिया को क्या पता क्या है प्यार का अहसास<br /> -- अभय त्रिपाठीअभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-84402423706426691812010-08-26T23:15:00.000+05:302010-08-26T23:16:23.638+05:30<p>आज एक ऐसा मंत्र मिला जिसे सुनकर शायद आप भी यकीन नहीं करेंगे....जिन्दगी की सबसे खूबसूरत चीज को अपने वश में करने का यानि वशीकरण मंत्र॥ क्या ये सही है.... आपको क्या लगता है... </p><p>मंत्र :'कामाख्या देश कामाख्या देवी,जहॉं बसे इस्माइल जोगी, इस्माइल जोगी ने लगाई फुलवारी, फूल तोडे लोना चमारी,जो इस फूल को सूँघे बास, तिस का मन रहे हमारे पास, महल छोडे, घर छोडे, आँगन छोडे, लोक कुटुम्ब की लाज छोडे, दुआई लोना चमारी की, धनवन्तरि की दुहाई फिरै।' </p>अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-38089157979540709732010-07-23T23:48:00.000+05:302010-07-23T23:52:40.126+05:30हमने जो सीखा वो क्यूं सीखा?<div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">सच्चाई की राह पर चलना सीखा</span></b></span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">हर हाल मे खुश रहना सीखा...</span></b></span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">इम्तिहान कितने भी हों जीवन मे...</span></b></span></div><div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">हमने बस आगे चलते रहना सीखा</span></b></span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">कठिन डगर कांटो की....</span></b></span></div></div><div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">धूप से भरी दुपहरी में भी निरंतर मजिल की तरफ बढ़ना सीखा...</span></b></span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">मेहनत से ख़ुशी हासिल करने को कठिनाइयों से लड़ना सीखा...</span></b></span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">आज बेकार लगते हैं वो सीख... जिसका कोई उपयोग नहीं</span></b></span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">हर बार मन में यही बात आती है...कि हमने </span></b></span><b><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">जो सीखा वो सब क्यूँ सीखा </span></span></b><span class="Apple-style-span" style="color:#330033;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></b></span></div></div>अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3356868130079078865.post-64491277708125509982010-03-14T01:54:00.000+05:302010-03-14T01:58:04.531+05:30दिन बदल गया समय बदल गया<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6_c6-somx676a4KviX2tq85ua3KXJ26FXRCeuDXKC0T7zY_yLctYNy0zSEPPmpBO3Q3Q2xSDmzou7bWUWSa10Su5nIxSWfL0QKm1dWYj7uOo6wZ3GK4GwTqP8tjN_6t6s-k4tc9A4_E4/s1600-h/CON1180.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 214px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6_c6-somx676a4KviX2tq85ua3KXJ26FXRCeuDXKC0T7zY_yLctYNy0zSEPPmpBO3Q3Q2xSDmzou7bWUWSa10Su5nIxSWfL0QKm1dWYj7uOo6wZ3GK4GwTqP8tjN_6t6s-k4tc9A4_E4/s320/CON1180.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5448217696109209442" /></a><br />दिन बदल गया समय बदल गया वो प्यार और वो एहसास बदल गया<br />जिस तरह से वो मेरे पास थी आज हमारा उनका रिश्ता बदल गया<br />कभी हम दोनों एक रहा करते थे आज दूरियों से रिश्ता व विश्वास बदल गया.<br />दिन बदल गया और वो समय बदल गया<br /><br />कभी वो मुझे आप कह कर बुलाती थी लेकिन आज मैं उनके लिए तुम हो गया<br />बोली बदली तेवर बदले औऱ भाषा भी बदल गई<br />जगह बदला शहर बदला हम बदले वो बदली आज दोनों यही कह रहे हैं<br />दिन बदल गया वो समय बदल गया <br /> <br /><br />शायद ये आवाज मेरे दिल से निकली है आप भी इस पर अपनी राय दें<br /><span style="font-style:italic;"></span>अभय त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/16110528468627527370noreply@blogger.com2